Introduction
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें दहेज और घरेलू हिंसा के मौजूदा कानूनों की समीक्षा और सुधार के लिए एक विशेषज्ञ समिति की नियुक्ति की मांग की गई थी, ताकि उनका दुरुपयोग रोका जा सके। जस्टिस बीवी नागरत्ना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि समाज को बदलना होगा और वह कुछ नहीं कर सकता। याचिका पर सुनवाई करने से इनकार करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'समाज को बदलना होगा, हम कुछ नहीं कर सकते। संसदीय कानून हैं।'
यह याचिका अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर की गई थी, जिसमें हाल ही में बेंगलुरु के एक इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या के मद्देनजर घरेलू हिंसा कानूनों में सुधार और उनके दुरुपयोग को रोकने की मांग की गई थी। याचिका में ऐसे कानूनों के दुरुपयोग को रोकने के लिए दिशा-निर्देश मांगे गए थे। याचिका में सरकार को विवाह के दौरान दिए गए सामान/उपहार/पैसे की सूची दर्ज करने और हलफनामे के साथ बनाए रखने का निर्देश देने की भी मांग की गई थी और इसका रिकॉर्ड रखा जाना चाहिए और विवाह पंजीकरण प्रमाण पत्र के साथ संलग्न किया जाना चाहिए।
याचिकाकर्ता ने कहा, 'दहेज निषेध अधिनियम और आईपीसी की धारा 498ए का उद्देश्य विवाहित महिलाओं को दहेज की मांग और उत्पीड़न से बचाना था, लेकिन हमारे देश में ये कानून अनावश्यक और अवैध मांगों को निपटाने और पति-पत्नी के बीच किसी अन्य तरह का विवाद होने पर पति के परिवार को दबाने का हथियार बन गए हैं। और इन कानूनों के तहत विवाहित पुरुषों को गलत तरीके से फंसाए जाने के कारण महिलाओं के खिलाफ वास्तविक और सच्ची घटनाओं को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।' याचिकाकर्ता ने कहा कि दहेज के मामलों में पुरुषों को गलत तरीके से फंसाए जाने की कई घटनाएं और मामले सामने आए हैं, जिसके कारण बहुत दुखद अंत हुआ है और साथ ही हमारी न्याय और आपराधिक जांच प्रणाली पर भी सवाल उठे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि यह केवल अतुल सुभाष का मामला नहीं है, बल्कि ऐसे पुरुषों की संख्या में कमी आई है, जिन्होंने अपनी पत्नियों द्वारा उन पर लगाए गए अनेक मामलों के कारण आत्महत्या की है। उन्होंने कहा, 'दहेज कानूनों के घोर दुरुपयोग ने इन कानूनों के उद्देश्य को विफल कर दिया है, जिसके लिए इन्हें बनाया गया था।'